एक मुद्दत से कोई आया न आँगन मे मेरे मेरे अपने न जाने मुझसे क्यूँ कर रूठे हैं उदास हैं दर-ओ-दीवार छतें रोती हैं मेरे गुलशन से बहारें क्यों जाने रूठे हैं मेरे अज़ाब मेरी ईब्तिला तो देख ज़रा आ भी जाओ कि बुलाता है आशियाँ तेरा न देख इंतेहां मेरे इंतज़ार की ज़ालिम कहीं न टूटकर वजूद बिखर जाए मेरा । रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #वजूद