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उलझा उलझा पत्ता हूँ फिर भी कम ना ज्यादा हूँ। तुमन

उलझा उलझा पत्ता हूँ
फिर भी कम ना ज्यादा हूँ।

तुमने पुकारा था उस दिन
तब से चलता जा रहा हूँ।

©डॉ. दिलीप कुमार पारीक
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