समझदारी का तमगा समझदारी से लगा कर उसने मुझको किनारा कर दिया दम भरते थे जो मोहब्बत का कल तक आज किसी और को सहारा कर लिया कुछ भी चाहा नहीं मोहब्बत और इज़्ज़त के सिवा कभी मगर ये भी न दे सके रब की मर्ज़ी समझ हमने अब उसकी हर एक रुसवाई को ग़वारा कर लिया ©Madhu Jha समझदारी का तमगा समझदारी से #dusk