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कैसी मोहताज है, ऐ हुस्न, तेरे ग़ुरूर की ज़िंदगी!

कैसी मोहताज है, ऐ हुस्न, तेरे ग़ुरूर की ज़िंदगी! 
अफ़सोस के बस आईने में ही दिखे तेरी ज़िंदगी! 
तेरा वजूद ठहरा फिर दो ज़िंदगियों का ग़ुलाम, 
एक जिस्म की ज़िंदगी, एक आईने की ज़िंदगी!

©Shubhro K
  #Husn
shubhrokdedas6046

Shubhro K

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