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मैं अपने जीवन का संन्यासी। तू बन आ मेरी पार्वती।



मैं अपने जीवन का संन्यासी।
तू बन आ मेरी पार्वती।
आज तक ही मैं दर-दर भटकता रहा।
तू आ के मुझे संभाल लें।
पता नहीं तूझे पाने के लिए 
मैं कितना बिखरा हूं।

©मुसाफिर
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