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इश्क तो उसे भी तो था मुझसे, फ़िर किसी एक को मुजरि

इश्क तो उसे भी तो था मुझसे, 
फ़िर किसी एक को मुजरिम क्यों ठहराया जाए ?

गुनाह-ए-इश्क में हम दोनो ही थे साथी बराबर के, 
फ़िर किसी एक पर ये इलज़ाम क्यों लगाया जाए?

 करनी है कारवाई अगर अदालत-ए-मोहल्ले में तुम्हे अपने,
 फ़िर गवाहों को मेरे मोहल्ले से भी बुलाया जाए।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
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