प्रेम एक ऐसी अनुभूति है,जो होने से पहले ना कोई, उम्र देखती है ना वक्त,ना जगह देखती है ना रीति रिवाज. मेरे कौन हो तुम ? एहसास हो तुम उस प्रेम का,जो उपजता है पहली बार, नाजुक से ह्रदय में....... स्पर्श हो तुम उस स्नेह का,जो महसूस होता है, किसी अपने के कंधे पर,सिर रखने में....... प्रतीक्षा हो तुम उस मिलन रात की,जो....... सजाता है अपने स्वप्नों में,अपने ह्रदय में....... एकान्तता हो तुम,उस सागर किनारे जैसी, जहाँ बैठ मैं सोचता हूँ,तुमको ,सिर्फ तुमको....... प्रेम हो तुम,वह प्रेम जो उपजा था, राधा के ह्रदय से,कान्हा के ह्रदय तक पहुँचने को, सबसे अनभिज्ञ , सबसे सत्य....... मैं पूछता हूँ खुद से,आखिर कौन हो तुम? वह कल्पना,जो मेरे ह्रदय ने की थी प्रेम की उस कल्पना का यथार्थ हो तुम,मेरा प्रेम हो तुम।।❤❤ ©पूर्वार्थ #अनुभूति