Nojoto: Largest Storytelling Platform

ज़लालत  क्या होती है, पीकदान से पूछ लो । दबे कुचले

ज़लालत  क्या होती है, पीकदान से पूछ लो ।
दबे कुचले का एहसास, पायदान से पूछ लो । 

दुश्मनी कितनी है,तलवार की म्यान से पूछ लो,
दोस्ती  कितनी है, अपने  बलिदान से पूछ लो ।

महलों के अमीरज़ादे क्या समझेंगे ग़रीबी को, 
मुफ़लिसी क्या होती है, टूटे मकान से पूछ लो ।

हम ख़ुशकिस्मत हैं, जो हमारे परिवार साथ हैं ,
अपनों की कमी, सरहद के जवान से पूछ लो ।

"पैरों की धूल के बराबर भी नहीं", सुना है ना !
तलवों का सम्मान, जूते की दुकान से पूछ लो ।

किसी की ज़िन्दगी से अँधेरा, कैसे मिटाते हैं ,
नहीं मालूम तो जाकर, रौशनदान से पूछ लो ।

कल की परवाह क्यों करते रहते हो, साहब, 
भविष्य में क्या होना है, वर्तमान से पूछ लो ।

हमेशा जिंदा रहने की ख़्वाहिश रखते हो क्या?
दो गज़ ज़मीन की कीमत, श्मशान से पूछ लो ।

©Sanjeev Singh #poetrybysanjeevsingh 

#Night
ज़लालत  क्या होती है, पीकदान से पूछ लो ।
दबे कुचले का एहसास, पायदान से पूछ लो । 

दुश्मनी कितनी है,तलवार की म्यान से पूछ लो,
दोस्ती  कितनी है, अपने  बलिदान से पूछ लो ।

महलों के अमीरज़ादे क्या समझेंगे ग़रीबी को, 
मुफ़लिसी क्या होती है, टूटे मकान से पूछ लो ।

हम ख़ुशकिस्मत हैं, जो हमारे परिवार साथ हैं ,
अपनों की कमी, सरहद के जवान से पूछ लो ।

"पैरों की धूल के बराबर भी नहीं", सुना है ना !
तलवों का सम्मान, जूते की दुकान से पूछ लो ।

किसी की ज़िन्दगी से अँधेरा, कैसे मिटाते हैं ,
नहीं मालूम तो जाकर, रौशनदान से पूछ लो ।

कल की परवाह क्यों करते रहते हो, साहब, 
भविष्य में क्या होना है, वर्तमान से पूछ लो ।

हमेशा जिंदा रहने की ख़्वाहिश रखते हो क्या?
दो गज़ ज़मीन की कीमत, श्मशान से पूछ लो ।

©Sanjeev Singh #poetrybysanjeevsingh 

#Night