ज़लालत क्या होती है, पीकदान से पूछ लो । दबे कुचले का एहसास, पायदान से पूछ लो । दुश्मनी कितनी है,तलवार की म्यान से पूछ लो, दोस्ती कितनी है, अपने बलिदान से पूछ लो । महलों के अमीरज़ादे क्या समझेंगे ग़रीबी को, मुफ़लिसी क्या होती है, टूटे मकान से पूछ लो । हम ख़ुशकिस्मत हैं, जो हमारे परिवार साथ हैं , अपनों की कमी, सरहद के जवान से पूछ लो । "पैरों की धूल के बराबर भी नहीं", सुना है ना ! तलवों का सम्मान, जूते की दुकान से पूछ लो । किसी की ज़िन्दगी से अँधेरा, कैसे मिटाते हैं , नहीं मालूम तो जाकर, रौशनदान से पूछ लो । कल की परवाह क्यों करते रहते हो, साहब, भविष्य में क्या होना है, वर्तमान से पूछ लो । हमेशा जिंदा रहने की ख़्वाहिश रखते हो क्या? दो गज़ ज़मीन की कीमत, श्मशान से पूछ लो । ©Sanjeev Singh #poetrybysanjeevsingh #Night