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sanjeevsingh9652
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Sanjeev Singh

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Sanjeev Singh

हर शहर गाँव में बस अमन चाहिए। 
स्वर्ण सा फ़िर हमें वो वतन चाहिए। 

ऐसा होना तो कोई भी मुश्क़िल नहीं, 
हम सभी का ज़रा सा जतन चाहिए।

©Sanjeev Singh
  #poetrybysanjeevsingh #sanjeevsingh #waahbhaiwaah #muktak
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Sanjeev Singh

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Sanjeev Singh

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Sanjeev Singh

गुमनाम रहने दो 
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इश्क़ के बाज़ार में मुझको, बे-नाम रहने दो ।
मुहब्बत की गलियों में मुझे, गुमनाम रहने दो ।

इश्क़ का इल्म रखने वाले, बहुत ख़ास हुए ,
मुझे इसकी तालीम नहीं, मुझे आम रहने दो ।

तुम मुझे यूँ ही छोड़कर, जा सकते हो कहीं ,
वो सुबह तुम्हारी हुई, मुझको शाम रहने दो ।

मुहब्बत का गुनाह तो दोनों ने किया मगर ,
तुम्हें बरी करता हूँ, मुझपर इल्ज़ाम रहने दो ।

तुम चाहो तो ये पूरा मयखाना, तुम रख लो ,
मुझे आँखों से नशा होता है, जाम रहने दो ।

मुझको इन मज़हबी जंगलों में मत घसीटो ,
मुझमें अल्लाह, यीशु, गुरू और राम रहने दो ।

संजीव सिंह

©Sanjeev Singh #poetrybysanjeevsingh #sanjeevsinghsuman #kumarsanjeev #Love  #Life 

#darkness
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Sanjeev Singh

ज़लालत  क्या होती है, पीकदान से पूछ लो ।
दबे कुचले का एहसास, पायदान से पूछ लो । 

दुश्मनी कितनी है,तलवार की म्यान से पूछ लो,
दोस्ती  कितनी है, अपने  बलिदान से पूछ लो ।

महलों के अमीरज़ादे क्या समझेंगे ग़रीबी को, 
मुफ़लिसी क्या होती है, टूटे मकान से पूछ लो ।

हम ख़ुशकिस्मत हैं, जो हमारे परिवार साथ हैं ,
अपनों की कमी, सरहद के जवान से पूछ लो ।

"पैरों की धूल के बराबर भी नहीं", सुना है ना !
तलवों का सम्मान, जूते की दुकान से पूछ लो ।

किसी की ज़िन्दगी से अँधेरा, कैसे मिटाते हैं ,
नहीं मालूम तो जाकर, रौशनदान से पूछ लो ।

कल की परवाह क्यों करते रहते हो, साहब, 
भविष्य में क्या होना है, वर्तमान से पूछ लो ।

हमेशा जिंदा रहने की ख़्वाहिश रखते हो क्या?
दो गज़ ज़मीन की कीमत, श्मशान से पूछ लो ।

©Sanjeev Singh #poetrybysanjeevsingh 

#Night
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Sanjeev Singh

#sanjeevsingh 

#MyPoetry
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Sanjeev Singh

#sanjeevsingh 

#MyPoetry
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Sanjeev Singh

 #sanjeevsingh 

#ReachingTop
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Sanjeev Singh

क्या भूल गए हम ज़माने ग़म के ।
जब जाम पिया करते थे जम के ।

गुज़र जाती थी रात बस यूॅं ही ,
सवेरे मिलते थे हम मचल के ।

चलते थे दौर शराब के अक्सर ,
और सुलझते थे झगड़े कल के ।

दोस्ती में प्याले टकराते थे ,
सूरज इजाज़त देता था ढल के ।

यारों की यारी में दम होता था ,
बताती थी शमा सुबह तक जल के ।

दोस्त के लिए कुर्बान थी ज़िन्दगी , 
जैसे रौशनी के लिए मोम पिंघल के । 

कोई गम भी गम ही नहीं लगता था ,
जब आती थी बात दोस्ती की चल के ।

यूँ तो मयखानों में तल्खियाॅं होती थी ,
मगर यारों से बोलते थे सॅंभल के ।

संजीव सिंह ✍️

©Sanjeev Singh #Life
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