यूँ तो मौन मेरा तुम्हें नज़र नहीं आता, पर जब कभी उठती है नज़र तुम्हारी, तो हज़ार सवालिया निशान लिए, मेरी चुप्पी बौखलाती है, और फिर चुप रह जाती है, तुम्हारे सवाल के जवाब में, देखती है मेरी नज़र तुम्हें, मन में ढेरों आश्चर्य लिए। यूँ तो मौन मेरा तुम्हें नज़र नहीं आता, पर जब कभी उठती है नज़र तुम्हारी, तो हज़ार सवालिया निशान लिए, मेरी चुप्पी बौखलाती है, और फिर चुप रह जाती है, तुम्हारे सवाल के जवाब में, देखती है मेरी नज़र तुम्हें, मन में ढेरों आश्चर्य लिए।