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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset खामोशी को

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset  खामोशी को इंकार भी कैसे समझूं,
अभी तक कुछ कहा भी तो नहीं है।
हो न हो इत्तेफाक इससे तुम्हे,
सर पर मेरे कोई इल्ज़ाम थोड़ी है।
वो कोई और होंगे उंगली से जो दब जाए,
मियां हम हम हैं कोई दाल नहीं है।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
खामोशी को इंकार भी कैसे समझूं,
अभी तक कुछ कहा भी तो नहीं है।
हो न हो इत्तेफाक इससे तुम्हे,
सर पर मेरे कोई इल्ज़ाम थोड़ी है।
वो कोई और होंगे उंगली से जो दब जाए,
मियां हम हम हैं कोई दाल नहीं है।
a-person-standing-on-a-beach-at-sunset  खामोशी को इंकार भी कैसे समझूं,
अभी तक कुछ कहा भी तो नहीं है।
हो न हो इत्तेफाक इससे तुम्हे,
सर पर मेरे कोई इल्ज़ाम थोड़ी है।
वो कोई और होंगे उंगली से जो दब जाए,
मियां हम हम हैं कोई दाल नहीं है।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
खामोशी को इंकार भी कैसे समझूं,
अभी तक कुछ कहा भी तो नहीं है।
हो न हो इत्तेफाक इससे तुम्हे,
सर पर मेरे कोई इल्ज़ाम थोड़ी है।
वो कोई और होंगे उंगली से जो दब जाए,
मियां हम हम हैं कोई दाल नहीं है।