ज़िक्र गर धीमे करूं, समझना पहरा था ज़िक्र गर रुक के करूं, समझना ठहरा था समझ जाना गर ज़िक् करूँ आँख झुकाकर समझ जाना जब ज़िक्र करूँ तुझको बुलाकर ज़िक्र ज़ख्मों का करूं, समझना बिस्मिल हूं ज़िक्र शोखी का करूं, समझना जाहिल हूं समझ जाना गर ज़िक्र परछाई का करूँ समझ जाना गर ज़िक्र हरजाई का करूँ ज़िक्र जाने का करूं, समझना आया था ज़िक्र आने का करूं, समझना साया था समझ जाना गर ज़िक्र करूं बाशिंदों का समझ जाना गर ज़िक्र करूं परिदों का ज़िक्र ज़ुल्फ़ों का करूं, समझना खोया था ज़िक्र लिपट कर करूं, समझना रोया था समझ जाना गर ज़िक्र आंसू लिखने लगे समझ जाना गर जिक्र में तू दिखने लगे ज़िक्र रुसवाई का करूं, समझना रूठा हूं ज़िक्र तेरा ना करूं, समझना झूठा हूं #ज़िक्र #वत्स #vatsa #dsvatsa #illiteratepoet #yqhindi ज़िक्र गर धीमे करूं, समझना पहरा था ज़िक्र गर रुक के करूं, समझना ठहरा था समझ जाना गर ज़िक् करूँ आँख झुकाकर समझ जाना जब ज़िक्र करूँ तुझको बुलाकर