इस सर्द का सर्द सा ख्वाब हो तुम, मेरे दिल के घर का माहताब हो तुम। ख्वाबों में आयी हुई, तमन्ना हो तुम, मेरे विचारों का इज़हार हो तुम। मेरे जीवन की उमंग हो तुम, मेरे हर कदम का, हमकदम हो तुम। मेरे जीवन की, हर डगर हो तुम, मेरे हर लफ्ज़ का, अल्फाज हो तुम। मेरी हर चुप्पी का, जवाब हो तुम, कायनात की कशिश क्या है? मेरी मुस्कान की कशिश हो तुम। चंचल से मेरे मन का, मन्द सा वेग हो तुम, मेरी तन्हाइयों का, उपाय हो तुम। मेरे इस अजेय मन की, अजिता हो तुम, दिल के इस शोर की आवाज़ हो तुम। जीवन के हर लम्हों में, याद किया जाने वाला नगमा हो तुम, मेरे मनरूपी श्याम की, राधा हो तुम। मेरी हर कल्पनाओं की, चेष्टा हो तुम, मेरे आदर्श जीवन की, पहचान हो तुम। उगते सूरज की, मुस्कान हो तुम, चंदा की कशिश की, पहचान हो तुम। मेरे जीवन की, अमिट छाप हो तुम, मेरे इस काव्य की, काव्या हो तुम। ©Ajay Shrivastava #kavya