जाने क्यूँ मेरे साथ हुआ है हर एक बार। लोगों की साजिशों का होता आया हूँ शिकार। ख़ामोशी से करता रहा हूँ मैं तो अपने काम- फिर क्यों मुझी पे पड़ते हैं उलाहनों के वार। मुझ पर ही सबकी उंगलियांँ हैं उठने को तैयार। नाकाम - ए - फेहरिस्त में होता हूँ मैं शुमार। करते हैं सभी गलतियांँ होती है सबसे भूल- लेकिन अकेले मुझको ही ठहराया गुनहगार। पहले की तरह अब नहीं रहा मेरा किरदार। होने लगा है अब मेरा वजूद तार - तार। मैं सोचता हूँ देख कर ये सबकी बेरुखी- इस बार कर ही डालूँ मैं इस पार या उस पार। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #जाने_क्यों