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गुजरे लम्हों की याद में,रहता है आदमी। आज को भी दर्

गुजरे लम्हों की याद में,रहता है आदमी।
आज को भी दर्द सा,सहता है आदमी।।
मर मरकर जी रहा है जीवन की बहार को।
कहता है दरिया वक्त का, बहता है आदमी।।

©Shubham Bhardwaj
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