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मुज़रिम हैँ महफिल के कसम से, गुनहगार हैं, महफ़िल म

मुज़रिम हैँ महफिल के 
कसम से, गुनहगार हैं,
महफ़िल में बैठे हैँ मगर, 
अंदर नहीं दिल में।
क्या हुआ चोरी हुआ गर 
दिल किसी से राब्ता,
धड़कनों की सुन ज़रा, तू भी
दिलों को हारकर ।

©Senty Poet
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jassalamarjit5769

Senty Poet

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