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चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,

चारुचंद्र की चंचल किरणें, 
खेल रहीं हैं जल थल में, 
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है 
अवनि और अम्बरतल में। 
पुलक प्रकट करती है धरती, 
हरित तृणों की नोकों से, 
मानों झूम रहे हैं तरु भी, 
मन्द पवन के झोंकों से ॥







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©Arpit Mishra #standout
चारुचंद्र की चंचल किरणें, 
खेल रहीं हैं जल थल में, 
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है 
अवनि और अम्बरतल में। 
पुलक प्रकट करती है धरती, 
हरित तृणों की नोकों से, 
मानों झूम रहे हैं तरु भी, 
मन्द पवन के झोंकों से ॥







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©Arpit Mishra #standout
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Arpit Mishra

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