है समय ये हास का,उल्लास का , मानवता के सौहार्द का! ये साथ नही थे छूटे, और ना ही हैं अब रूठे, आओ एक साथ मस्ज़िद में चलें, और दिल खोलकर रामायण पढ़ें, कुछ बातें हो मोहम्मद साहब की, और तुलसी की जबान हो, हम दोनों की बोली में, क़ुरान की आन हो।। ईश्वर-अल्ला करे जब हम छूटें, तो वो कयामत की रात हो। हम साथी है व्यवहार के, त्योहार की लचकार के, हमारी अनेकता में एकता का, इश्क तुम्हारी श्रद्धा का, हे साथी अब ना रुठे, मान हमारी तिरंगा का।। हिन्दू-मुस्लिम भाइ भाई।।