लहू पुकार लेगा तुमको, मिट्टी की तरफ। तू आसमां में कहां ताजमहल ढूंढता है। क्रांति फूटने को बस तैयार है कहीं यहीं पर। संकोची बस एक पहल ढूंढता है। ये पथराई आंखों में मोहब्बत थी कभी। नादान इसमें क्या जल ढूंढता है। भीड़ में सब गवैया बने हुए है निर्भय। इनकी जुबान में क्यों गजल ढूंढता है। ©निर्भय चौहान #IFPPoetry #Anger Dhyaan mira Sudha Tripathi