मुश्किलें जब बन क़हर, जीवन में आती हैं, तोड़तीं हैं फोड़ती हैं, नस नस दुखाती हैं। आवेगों की जड़ पर नाहक होता है प्रहार, किन्तु तब भी मनुज तो मानता न हार। तोड़ बंधन ,रुदन, थकन, उठ डोलता मनु का हृदय। फिर आती है घोर प्रलय।।१।। प्रलय...।।