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मुश्किलें जब बन क़हर, जीवन में आती हैं, तोड़तीं हैं

मुश्किलें जब बन क़हर, जीवन में आती हैं,
तोड़तीं हैं फोड़ती हैं, नस नस दुखाती हैं।
आवेगों की जड़ पर नाहक होता है प्रहार,
किन्तु तब भी मनुज तो मानता न हार।
तोड़ बंधन ,रुदन, थकन,
उठ डोलता मनु का हृदय।
फिर आती है घोर प्रलय।।१।। प्रलय...।।
मुश्किलें जब बन क़हर, जीवन में आती हैं,
तोड़तीं हैं फोड़ती हैं, नस नस दुखाती हैं।
आवेगों की जड़ पर नाहक होता है प्रहार,
किन्तु तब भी मनुज तो मानता न हार।
तोड़ बंधन ,रुदन, थकन,
उठ डोलता मनु का हृदय।
फिर आती है घोर प्रलय।।१।। प्रलय...।।
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Vivek Mishra

New Creator