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Vivek Mishra

कवि हृदय से, शायर मन से...।।

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Vivek Mishra

अंधेरे अब किसका हाथ थामेंगे,

मेरी खिड़की से आज रौशनी ने झांका है...।। #nojoto

nojoto #Quote

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Vivek Mishra

इक छोटा सा राज छुपाये जा रहा हूँ,
फिर किसी अजनबी से दिल लगाये जा रहा हूँ।
वो बारिश बनके आसमां से झरती है,
मैं भीग के पतंगें उड़ाये जा रहा हूँ।
एक जो नगमा बेहद पसंद है उसे,
मैं उसकी गली से वही गुनगुनाये जा रहा हूँ।
वो छत पे जुल्फें सवांर रही है,
मैं हाथों में शीशा चमकाये जा रहा हूँ।
वो जिस नज़रिये से देखती है मुझे,
मैं खुद को उसी क़ाबिल बनाये जा रहा हूँ।
वो मरहमी सा चाँद है, अमावस का,
मैं अंधेरा हूँ, उसमें समाये जा रहा हूँ। #nojoto

nojoto #Shayari

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Vivek Mishra

यदि तुम मुझे देते निमन्त्रण।
अपना पुनः निर्माण करता,
कुछ अलौकिक प्राण करता,
इक तुम्हारे इंगितों पर ,
उठ खड़ा होता उसी क्षण।।१।।
मैं जगत को जीत जाता,
फिर अमर वह गीत गाता,
मैं न मुझमें रह सा जाता,
कर देता हर श्वास अर्पण।।२।।
यदि तुम मुझे देते निमन्त्रण।। #nojoto

nojoto #poem

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Vivek Mishra

रात ने हवा से पूंछा है,

वो शख्स कहाँ गया , जो मेरे गोदी में  ग़ज़लें लिखा करता था...।।✍️ रात...।।

रात...।। #Shayari

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Vivek Mishra

चल के फिर टूटे हुये सपनों को संजोये,
बंजर किस्मत पे कर्मों के बीज बोयें,
अंधेरे तो मुफ्त मिलें हैं , दिन ब दिन,
चल के उजाले को बेझिझक ढोयें।।
ये वक्त है वक्त बदलने का ,
और मंजिल तक अनवरत चलने का..।। वक्त, वक्त बदलने का...।।

वक्त, वक्त बदलने का...।। #poem

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Vivek Mishra

मुश्किलें जब बन क़हर, जीवन में आती हैं,
तोड़तीं हैं फोड़ती हैं, नस नस दुखाती हैं।
आवेगों की जड़ पर नाहक होता है प्रहार,
किन्तु तब भी मनुज तो मानता न हार।
तोड़ बंधन ,रुदन, थकन,
उठ डोलता मनु का हृदय।
फिर आती है घोर प्रलय।।१।। प्रलय...।।

प्रलय...।। #poem

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Vivek Mishra

यदि अमर गान वह गा पाता।
उर में कुछ शब्द पिरो करके,
साँसों में लाता भर भरके,
तब कंठ बनाता छंद उन्हें,
फिर होंठों पर काश सजा पाता।।
वसुधा सी गढ़ी शिथिलता वह,
लहरों सी क्षणिक विकलता वह,
तुंग गोद में बैठ कहीं पर,
इन्हें अधरों तक केवल ला पाता।।
कर पाता जगती का श्रृंगार,
बस स्नेह बरसाता अपार,
नभ को बाहों में लेकर,
बादल बनकर बस छा पाता।।
यदि अमर गान वह गा पाता।।
                      -व्याकुल


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