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चंद रोज़ ही हुए हैं,मेरा आशियाना जले सुना है वो मौ

चंद रोज़ ही हुए हैं,मेरा आशियाना जले
सुना है वो मौहब्बत का मेरी
किश्तों में व्यापार कर रहे हैं,
जिसे गले से नीचे कभी देखा तक नहीं
अफ़सोस के आज कोई और
उनके हुस्न का दीदार कर रहे हैं ।

- कवि अनिल कुमार कवि अनिल कुमार
चंद रोज़ ही हुए हैं,मेरा आशियाना जले
सुना है वो मौहब्बत का मेरी
किश्तों में व्यापार कर रहे हैं,
जिसे गले से नीचे कभी देखा तक नहीं
अफ़सोस के आज कोई और
उनके हुस्न का दीदार कर रहे हैं ।

- कवि अनिल कुमार कवि अनिल कुमार