प्रदीप छन्द :-गीत नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। नही किसी से कहना है अब ... सुनकर सबकी बातें हमने , खायी दिल पे चोट है । किससे जाकर मैं अब पूछूँ , क्या मुझमें अब खोट है ।। कोई तो बतलाये मुझको , क्या ये जग की रीति है । बिन बादल क्यों देखा हमने , जीवन में बरसात को ।। नही किसी से कहना है अब.... राह दिखाओ जगदम्बें माँ , बीच भँवर में नाव है । एक तुम्हारे दर पे ही तो , पाते ही सब छाँव है ।। मुझे मातु कुछ भक्ति दिला दो , यही पास में गाँव है । तेरी सुधि में दौडा आया , क्या देखूँ दिन रात को ।। नही किसी से कहना है अब .... मैं भी अपनी माँ का प्यारा , राजा बेटा एक हूँ । जिसका हूँ मैं एक सहारा , देखो वही विवेक हूँ ।। कैसे उसका कर्ज उतारूँ , करता आज विचार हूँ । जिसके खून पसीने से मैं , किया नई शुरुआत को ।। जाकर उससे ही कहना अब..... नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द :-गीत नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। नही किसी से कहना है अब ... सुनकर सबकी बातें हमने , खायी दिल पे चोट है । किससे जाकर मैं अब पूछूँ , क्या मुझमें अब खोट है ।। कोई तो बतलाये मुझको , क्या ये जग की रीति है ।