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लबों पर लिए हुए कोई ज़िक्र अता कर, ए दिल-ए-नादान त

लबों पर लिए हुए
कोई ज़िक्र अता कर,
ए दिल-ए-नादान
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

जान कर अंजान बन
न मेरी इंतिहां कर,
दे कोई इल्जाम और
मुझे बेनकाब कर ।
ए दिल-ए-नादान 
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

मुश्तकिल सा बैठ कर
मेरा जुर्म क़रार पढ़ ,
लिख कोई सजा मुझे
या जला मुझे अंगार पर ।
ए दिल-ए-नादान 
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

जले ना कोई रोशनी
जहां मुझे तू क़ैद कर,
नसीब मौत भी न हो
बेतरतीब सा तू वार कर ।
ए दिल-ए-नादान 
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

-©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) तू मेरा फ़ैसला कर...

लबों पर लिए हुए
कोई ज़िक्र अता कर,
ए दिल-ए-नादान
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

जान कर अंजान बन
लबों पर लिए हुए
कोई ज़िक्र अता कर,
ए दिल-ए-नादान
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

जान कर अंजान बन
न मेरी इंतिहां कर,
दे कोई इल्जाम और
मुझे बेनकाब कर ।
ए दिल-ए-नादान 
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

मुश्तकिल सा बैठ कर
मेरा जुर्म क़रार पढ़ ,
लिख कोई सजा मुझे
या जला मुझे अंगार पर ।
ए दिल-ए-नादान 
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

जले ना कोई रोशनी
जहां मुझे तू क़ैद कर,
नसीब मौत भी न हो
बेतरतीब सा तू वार कर ।
ए दिल-ए-नादान 
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

-©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) तू मेरा फ़ैसला कर...

लबों पर लिए हुए
कोई ज़िक्र अता कर,
ए दिल-ए-नादान
तू मेरा फ़ैसला कर ।।

जान कर अंजान बन

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