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वकालत शानदार किये वो खुद के ही शहर में होने की, क

वकालत शानदार किये वो खुद के ही शहर में होने की,
 कोना-कोना पर उनींदा रहा फुर्सत जो न थी सोने की.
पाकर नाउम्मीदी निकली, उम्मीद बेसुमार थी जिसे पाने की,

 खूँ के निशान वर्षों पड़े रहे हथेली पे, 
जुर्म ही किये इतने फुर्सत न मिली धोने क़ी #जुर्म
वकालत शानदार किये वो खुद के ही शहर में होने की,
 कोना-कोना पर उनींदा रहा फुर्सत जो न थी सोने की.
पाकर नाउम्मीदी निकली, उम्मीद बेसुमार थी जिसे पाने की,

 खूँ के निशान वर्षों पड़े रहे हथेली पे, 
जुर्म ही किये इतने फुर्सत न मिली धोने क़ी #जुर्म