दबा दिए वो आवाज कब कि, हाथ अपना मुँह पर रखकर मासूम बनी है फिरंगी कि औलादें , चाल शतरंज कि खेलकर लुटे है कितने मकान उसने, आँसुओ कि चादर बुन बुनकर दिखावा है सब ढोंग रचा हँस रहें है शातिर नक़ाब ओढ़कर काँटों से होती है चुभन, लंगड़ाते है घोड़े नाल जब भी निकलती है क्योंकि फूल कोमल होते है फूल ही चुनता है माली आँखें मूँदकर कहने को है आजाद यहाँ आज भी कुछ कहने पर है पाबंदी फकीरों के लिए बने है कायदे छूटे है अमीर कितने बेलपर सबकी नज़र में वो क़ातिल है उसे लटका दिया सूलीपर उसकी निगाहें कुछ बोल रही है क्यों हाथ रक्खा है मुँहपर मैं बोलूँगा तो राज़ खुलेंगे कई मुझे दफ़नाया बस यहीं सोचकर कहीं बता ना दे "दीप" लुटेरों कि हक़ीक़त मुर्दो के शहर में रहकर ©Deep bawara #आवाज #yqdidi #yqbaba #मुर्दो_का_शहर #हकीकत #फूल_और_काँटे #nojato