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इश्क दी जात न पुच्छियो, बाहर ब्राह्मण है भीतर द

इश्क दी जात न पुच्छियो,

बाहर ब्राह्मण है 

भीतर दलित रहिए।

पतित ते पावन
भजते रहिए...
.............. ............
इश्क दी जात न पुच्छियो,

बाहर ब्राह्मण है 

भीतर दलित रहिए।

पतित ते पावन
भजते रहिए...
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