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है तलब दिल से उतर आये अपनी आंखों से औझल हो जाये

है तलब दिल से उतर आये 
अपनी आंखों से औझल हो जाये

लिखूं जो गजलें तेरी सूरत पर 
काश के तू सामने आ जाये

कितना दुश्वार है दिल लगाना 
फिर भी कैसे हम मजबूर हो जाये

उसकी आंखें लिखूं तो सुखुन आ जाये
ये शायरी का फन उसको भी आ जाये

कैसे दर्द को दर्द से मिटाना पड़ेगा 
उसको भुलाना हमको भी आ जाये

में ऐन कहूं मुझको चैन आ जाये 
वो फिर बेचैन हो जाये

©Sagar Oza
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