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sagaroza8542
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Sagar Oza

कुछ मसले है जो ताउम्र हल नहीं होंगे जो आज है हमारे, वो कल नहीं होंगे

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Sagar Oza

White हयात-ऐ-ग़म में तू उतरकर तो देख 
मुझे एक बार तू दांव पर लगाकर तो देख

जा निसार ना कर दु में तुझ पर तो तू कहना
पर तु एक बार अदाओं से मुझको बहलाकर तो देख

है हुस्न तुम्हारे पास तो 
एक बार मुझको आज़माकर देख

में यूँही नहीं तेरी बाहों में सिमटने वाला 
तू इश्क़ हक़ीक़ी निभाकर तो देख

देखो जी भर के कर लो तुम मिज़ाजी अपने मिजाज की 
में तेरा साथ तब भी ना दू तो तू मुझको कहकर देख

©Sagar Oza #sad_shayari
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Sagar Oza

छूट कुछ गये जो साथी राह में
अब आगे बढ़ जाना है

जो ख़्वाब टूट गये थे उनको छोड़कर
अब आगे बढ़ जाना है

ढल जाएगी ये रात भी इस तरह 
देर बडेर दिन को आगे बढ़ जाना है

इस जहाँ में हर कोई मुसरीफ़ है अपनी अना में 
छोड़कर सब को अब आगे बढ़ जाना है

आगे बढ़ने का नाम ही तो जिन्दगी है 
छोड़ तू अब सब मरहलों को बस आगे बढ़ते जाना है

कोई आएगा कोई जएगा , रुकना है जिसको वो तो बस रुक जाएगा
फिक्र न कर तू कल की बस आगे बढ़ते जाना है

©Sagar Oza #arabianhorse #sagaroza #sagarozashayari
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Sagar Oza

ram lalla कोई तुम पर क्या काव्य करेगा 
तुम खुद ही एक महाकाव्य हो राम ।

©Sagar Oza #ramlalla
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Sagar Oza

लोगों के मुताबिक नज़र आने की, 
अदा सीख रहा हूँ ज़माने की। 

किसी भी तरह घर में ठहर जाऊँ, 
तलाश है मुझे बस एक बहाने की। 

इसीलिए दरवाजा खोला नहीँ था, 
उम्मीद नहीं थी तेरे आने की। 

कमरे को देखकर हंसी आ जाती है, 
कोई बाते करता था इसे सजाने की। 

इस डर से भी कि तू रो ना पड़े, 
हिम्मत नहीं मेरी कहानी बताने की। 

मांगने मे कोई कसर नहीं छोड़ी, 
अब देरी है दुआओं के असर दिखाने की। 

वैसे वाजिब तो यही है मगर ख्वाहिश नहीं है, 
तेरी जगह किसी और को बैठाने की। 

काट दो ये गवारा है मुझे, 
ख़ून इजाजत नहीं देता सर झुकाने की। 

बाल भी कटवा लिए और काम पर भी जाने लगा, 
हाँ, अब तैयारी ही है तुझे भुलाने की।

©Sagar Oza #StandProud #sagaroza #sagarozagoogle #sagarozashayari
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Sagar Oza

मैं तो खुदा की तलाश में निकला था,
इंसानियत के निशां ढूंढने निकला था।

जलती रही लाशें यहां बिन शमशान के,
मैं तो उन मुर्दों के पते ढूंढने निकला था।

अब इंसान नजर नहीं आते तेरे जहां में,
इंसान होने का सबूत ढूंढने निकला था।

कितनों की अस्मत सिसकती रही रात भर,
तन ढांपने को एक चीथड़ा ढूंढने निकला था।

बहरे से हो चुके हैं कान उनकी चीखों से,
मासूमों के लिए कफन ढूंढने निकला था।

छाई है अजब सी खामोशी आज की रात,
उस खामोशी का शोर सुनने निकला था।

सुना करते हैं कि यहां इंसानों की बस्ती है,
यकीन करने का कारण ढूंढने निकला था।

कौन कहता है खौफ जंगलों में ही बसता है,
खौफ़जदा ना हो वो गली ढूंढने निकला था।

अब तलक लड़ते ही मिले मजहब के नाम पर,
दफन इंसानियत के कंकाल ढूंढने निकला था।

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Sagar Oza

सीता को जिसने छुआ तक नहीं वो जल रहा है 
भरी द्रुत सभा मे जिन्होंने द्रोपदी का चिरहरण किया वो किताबो में महफूज रह रहे है ।

©Sagar Oza #tumaurmain
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Sagar Oza

नवरात्र में शक्ति को पूजने वाला समाज ये भूल जाता है , की वो जिसकी उपासना कर रहे है वो भी एक "स्त्री" है . पूजने के बजाय स्त्री को इज्जत की जाए तो वो भी उपासना ही है

©Sagar Oza #navratri
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Sagar Oza

युद्ध इंसानो द्वारा की गयी हत्या है

©Sagar Oza #sagaroza
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Sagar Oza

तेरा दूर जाना एक ख़्वाब था 
में रातों को जागा तो नींदों से बेज़ार था

यूँही तकता रहा में रस्ता तेरा 
में तो राहों में पड़ा बेकार था

तेरे मिलने को क्यों इतना तलबगार था 
शायद मौत को मिलने को में बेक़रार था

यूँही नहीं होती अब मेरी शाम हसीन 
तन्हाई का अपना अलग एक अंदाज था

तुझपर मुझे बड़ा गुमान था 
अभी असली चेहरा देखना बाकी था

सो मसअलहते है इश्क़ में अभी 
हिज्र देखना बाकी था

तुम मानोगी नहीं और में कहूंगा नहीं 
तुमसे इश्क़ मुझे कभी था

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Sagar Oza

ये किस खुशी में गम जिस्म से लिपट रहा है 
अब तो तेरी फुरकत गुजारी जा रही है

एक रोज़ सिगरेट पीते हुवे चूमे थे लब मेरे उसने 
उसकी मिठास लबों से मिटायी जा रही है

इक बार कहा था मैंने उसे तुम्हें पाने की तमन्ना है मुझे
तब से बिछड़ने का दस्तूर किया जा रहा है

रोज रोज एक ख़्वाब सजा रखा था मैंने आंखों में 
अब तो तकिये की कीमत लगाई जा रही है

कैद हो गये थे किसी के चक्ष-ऐ-गार में 
अब तो पंछी की रिहाई मांगी जा रही है

सुना है मांगने से नहीं मिलती हर चीज यहाँ 
इसीलिये इंतजार को सुखुन लिखा जा रहा है

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