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मैं चाहूंगी काशी का बनारस घाट हो जाना तेरी शांति


मैं चाहूंगी काशी का बनारस घाट हो जाना 
तेरी शांति की धुन में खो जाना,
मैं चाहूंगी गंगा मे डुबकी लगाकर अपने पाप मिटाना....
 मैं चाहूंगी हिमालय की बर्फीली 
नीली सफेद पहाड़ी हो जाना, 
अपनी मस्ती की धुन में घटती, बढ़ती, फिसलती,
 कभी कभी दिशाहीन हो जाना....
मैं चाहूंगी मणिकर्णिका घाट का आखरी सफर हो जाना,
हां मैं चाहूंगी महादेव आपके चरणों में 
पुष्प बनकर समर्पित हो जाना.... 
मैं चाहूंगी इन बर्फीली पहाड़ियों में,
वादियों से सच्चा इश्क निभाना, 
हाँ मैं चाहूंगी...............हाँ मैं चाहूंगी..!!

©Moksha
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