सफेद दरख्त अब उदास हैं जिन परिंदों के घर बनाये थे वो अपना आशियाना ले उड़ चले। सफेद दरख्त अब तन्हा हैं करारे करारे हरे गुलाबी पत्ते जो झड़ गये परिंदो के पर उनके हाथों से छूट गये। सफेद दरख्त अब लाचार हैं छाव नहीं है उनके तले