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अंधेरे के साये मे इतना जिया था की,रोशनी से नजर मिल

अंधेरे के साये मे इतना जिया था की,रोशनी से नजर मिलाना भूल सा गया था ,,,,

इसलिए अब रात भर जाग के भी, दिन मे जल्दी जग जाता हूँ.
जिंदगी किसी के साये मे कितना जीऊंगा,अब खुद के हिस्से की धुप मे खुद को चलाता हूँ.
थकते शरीर को और थोड़ा थकाता हूँ , थोड़ा गिरता हूँ और कभी कभी लड़खड़ा भी जाता  हूँ.
पर खुद को फिर से संभाल के,रोशनी से नजर मिला के,सफऱ मे फिर निकल जाता हूँ.

©Mohit
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