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अंतस क्यों यह भाव जगा अब जीव चराचर क्रंदन काहे। मा

अंतस क्यों यह भाव जगा अब जीव चराचर क्रंदन काहे।
मानुष जंगल काट रहा सब छोड़ रहे कुटिया अनचाहे।।
सूख रहे सब ताल नदी जल संभव ना अब है मनचाहे ।
नाश रहे घर-द्वार सभी अब जाय जहाँ खग-वृंदन चाहे।।

दंभ दिखावन को अपना सब मार रहे जल पावन आशा।
दानव लालच घेर रहा जल संकट कारण घोर निराशा।।

©Bharat Bhushan pathak
  अंतस क्यों यह भाव जगा अब जीव चराचर क्रंदन काहे।
मानुष जंगल काट रहा सब छोड़ रहे कुटिया अनचाहे।।
सूख रहे सब ताल नदी जल संभव ना अब है मनचाहे ।
नाश रहे घर-द्वार सभी अब जाय जहाँ खग-वृंदन चाहे।।

दंभ दिखावन को अपना सब मार रहे जल पावन आशा।
दानव लालच घेर रहा जल संकट कारण घोर निराशा।।
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