टूटी है कश्ती , तेज है धारा ना है मांझी ना पतवार का है सहारा भरे चाहे कितनी भी उफान ये वारिधि कभी-ना-कभी तो मिलेगा किनारा ...! टूटी है कश्ती Prachi Singh Bhardvaaj