ये' कैसे दिन गुज़ारेंगे , कहो जब याद आओगे। सुनाते जा रहे हमको, कि सावन बाद आओगे। दिवाली पर नहीं आए, निकलती जा रही होली। सजा देंगे शहर जब यार, फर्रुखाबाद आओगे। ©सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) #RAIN_VECTOR #कविता_संगम