बहुत सम्भल कर लिखना पड़ता है जहन -ए -जज्बात को......! अपनें देश में गद्दारी और नहीं भूल सकता उस घात को.........! वर्ना स्याही पे नही,गहराई पर सवाल उठता है.................! दिल की बात उकेरती है कलम फिर भी,भाई भाई से रूठता है ! नहीं चाहता सच पर,किसी प्रकार का पहरा हो............! सोचता दोस्ती बनी रहे, न कभी दुश्मनी गहरा हो.........! बनते है कुछ बुद्धिजीवी कुछ मानव अधिकार के रखवाले....! सेना पर होता घात तो लगते इनके मुंह पर ताले.........! अब तो मैंने सोच रखा है,कलम में धार बनाऊंगा....... ! नहीं तलवार तो कलम से ही दुश्मनों को सबक सिखाऊंगा...! अशोक वर्मा"हमदर्द" ©Ashok Verma "Hamdard" आतंकवाद