White क्या धनतेरस क्या दीवाली। कैसी खुशियां और खुशहाली। चमक रौशनी के सब फीके - जीवन काजल जैसी काली। न उत्साह न कोई उमंग। खुशियों की नहीं कोई तरंग। मन आंगन सूना - सूना है - बुझी रौशनी उतरा रंग। अपनों के खोने का ग़म है। भीगी पलकें आंखें नम है। बुझा हुआ है आस का दीया- अंतहीन अंतस में तम है। दिन बेनूर सी बदली वाली। रात अमावस जैसी काली। कैसे मन का दिया जलाएं- कैसे मनाएं हम दीवाली। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #ग़म