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मंदिर में पानी भरती वह बच्ची चूल्हे चौके में

मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
    चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
      भट्टी में रोटी सा तपता रामू
 ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू 
रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता           
      चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
 कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
 खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
 किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।
 दीवार की ओट से खड़ी वो उदासी
  है बेबस, है लाचार इन मासूमों की मायूसी
  दिनरात की मजदूरी है मजबूरी
  फिर भी है भूखा वह, भूखे माँ-बाप और बहन उसकी।
   कुछ ऐसा था आलम उस पुताई वाले का
   पोतता था घर भूख से बिलखता।
 कुछ माँगने पर फूफा से मिलती थी मार लताड़।
 इसी तरह बेबस शोषित हो रहे हैं
   कितने ही बच्चे बार-बार।
 न इनकी चीखें सुन रहा, न नम आँखें देख रहा
      वक्त, समाज, सरकार!!!
 होना था छात्र, होता बस्ता हाथ में,
 इनका बचपन भी खेलता,
 साथियों व खिलौनों के साथ में।
  पर जकड़ा !!
  गरीबी,मजदूरी,भुखमरी और बेबसी ने इनके बचपन को!
   शर्मिंदा कर रही इनकी मासूमियत समाज की मानवता को।
     दी सरकार ने...
 जो स्कूलों में निशुल्क भोजन पढाई की व्यवस्था
  पेट भरते है उससे अधिकारि ही ज्यादा।
 फिर क्या मिला ?
       इन्हें इस समाज से
   बना दिया सरकार ने..
 बस एक " बाल श्रमिक दिवस"इनके नाम से।
                पारुल शर्मा मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
भट्टी में रोटी सा तपता रामू
ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।
मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
    चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
      भट्टी में रोटी सा तपता रामू
 ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू 
रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता           
      चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
 कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
 खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
 किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।
 दीवार की ओट से खड़ी वो उदासी
  है बेबस, है लाचार इन मासूमों की मायूसी
  दिनरात की मजदूरी है मजबूरी
  फिर भी है भूखा वह, भूखे माँ-बाप और बहन उसकी।
   कुछ ऐसा था आलम उस पुताई वाले का
   पोतता था घर भूख से बिलखता।
 कुछ माँगने पर फूफा से मिलती थी मार लताड़।
 इसी तरह बेबस शोषित हो रहे हैं
   कितने ही बच्चे बार-बार।
 न इनकी चीखें सुन रहा, न नम आँखें देख रहा
      वक्त, समाज, सरकार!!!
 होना था छात्र, होता बस्ता हाथ में,
 इनका बचपन भी खेलता,
 साथियों व खिलौनों के साथ में।
  पर जकड़ा !!
  गरीबी,मजदूरी,भुखमरी और बेबसी ने इनके बचपन को!
   शर्मिंदा कर रही इनकी मासूमियत समाज की मानवता को।
     दी सरकार ने...
 जो स्कूलों में निशुल्क भोजन पढाई की व्यवस्था
  पेट भरते है उससे अधिकारि ही ज्यादा।
 फिर क्या मिला ?
       इन्हें इस समाज से
   बना दिया सरकार ने..
 बस एक " बाल श्रमिक दिवस"इनके नाम से।
                पारुल शर्मा मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
भट्टी में रोटी सा तपता रामू
ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।
parulsharma3727

Parul Sharma

New Creator

मंदिर में पानी भरती वह बच्ची चूल्हे चौके में छुकती छुटकी भट्टी में रोटी सा तपता रामू ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते। #बचपन #nojotoofficial #2liner #nojotohindi #nojotoquotes #मासूम #गरीबी #पढ़ाई #kalakash #panchdoot_social #TST #likho_india #बालदिवस #बाल_श्रमिक