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जख्म देकर मेरे दिल पर नये-नये निशान करती है वो लड़क

जख्म देकर मेरे दिल पर नये-नये निशान करती है
वो लड़की जो परेशान करती थी,परेशान करती है

खामियां ही खामियां दिखता था जिसे मेरे गाँव मे
वो अपने शहर पर गुमान करती थी,गुमान करती है

मेरे हर अज़ीज़ से शिकायत रहती थी जिसे
अपने हर अज़ीज़ का बखान करती थी,बखान करती है

मैं कितना जालिम हु,मुझे इश्क़ के तौर-तरीके नही आते
वो ये बात हर किसी से बयान करती थी,बयान करती है

                                    -(क्षत्रियंकेश) जालिम!
जख्म देकर मेरे दिल पर नये-नये निशान करती है
वो लड़की जो परेशान करती थी,परेशान करती है

खामियां ही खामियां दिखता था जिसे मेरे गाँव मे
वो अपने शहर पर गुमान करती थी,गुमान करती है

मेरे हर अज़ीज़ से शिकायत रहती थी जिसे
अपने हर अज़ीज़ का बखान करती थी,बखान करती है

मैं कितना जालिम हु,मुझे इश्क़ के तौर-तरीके नही आते
वो ये बात हर किसी से बयान करती थी,बयान करती है

                                    -(क्षत्रियंकेश) जालिम!
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जालिम!