(जाने दो) जाने दो, अब मुझे घर जाने दो। जीते रहें तुझे जीलाते रहें।। धूप में श्रम कर , तेरा घर बनाते रहें। अंधेरे में यूँ दिन बिताते रहे, कि तेरा घर जगमगाता रहे।। जाने दो, अब मुझे घर जाने दो। ठीक रहा तो फिर लौटूंगा, तेरा शहर बसाने को। घर में बूढी माँ-बाप,जो नैन सजाये बैठे हैं।। राह निहारते इधर-उधर जो अपने घर बैठे हैं। जाने दो, अब मुझे घर जाने दो। मेरी मिट्टी मेरी माँ जिसने मुझे किया है याद । उस मिट्टी का सुगंध मन मेरे जो छाया ।। उस मिट्टी का है कर्ज चुकाना , जिसने मुझे समर्थ बनाया । जाने दो, अब मुझे घर जाने दो। अपनी मिट्टी -संग फिर अच्छे हो जायेंगे। अपनों के संग जो जीवन बितायेंगे।। सब हैं वहाँ अपने लोग , घर वहीं बसायेंगे। जाने दो, अब मुझे घर जाने दो।। तेरा क्या है ,अच्छे में अच्छाई दिखाओगे । अब क्या खाक मदद कर पाओगे।। अपने घर जो चल जायेंगे, गुजर-बसर हम कर पायेंगे । जाने दो अब मुझे घर जाने दो। ©संगीत कुमार /जबलपुर ✒️स्व-रचित कविता 🙏🙏 (जाने दो) जाने दो, अब मुझे घर जाने दो। जीते रहें तुझे जीलाते रहें।। धूप में श्रम कर , तेरा घर बनाते रहें। अंधेरे में यूँ दिन बिताते रहे, कि तेरा घर जगमगाता रहे।। जाने दो, अब मुझे घर जाने दो।