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गीत :- वह बतलाते हैं धर्म हमें , अब जिनका कोई धर्

गीत :-

वह बतलाते हैं धर्म हमें , अब जिनका कोई धर्म नहीं ।
खेल रहे हैं खूनी होली , क्या कहता उनका कर्म नहीं ।।
वह बतलाते हैं धर्म हमें....

कोई बापू बन बैठा तो , कोई चाचा बन बैठा है ।
दीदी भैया के खेलों में , कोई बेटा बन बैठा है ।।
समय समय पर देखा हमने , सब अपना रिश्ता बतलाते ।
ऐसे रिश्तों में अब तक तो, सुन हमने देखा मर्म नहीं ।।
वह बतलाते है धर्म हमें ....

भूखी प्यासी जनता सारी , बिलख रही है गली-गली में ।
इधर-उधर बिखरे पर सारे , तितली बे-सुद पड़ी जमीं में ।।
सभी अट्टहस कर ढाढस दें , लो यह पैसे रकम बड़ी है ।
ऐसा अब इनको कहने में , सुन लो अब आती शर्म नही ।।
वह बतलाते है धर्म हमें ....

कोई हिन्दू-हिन्दू करता , कोई मुस्लिम-मुस्लिम करता ।
लेकिन असली पहचान यहाँ , वह धन दौलत से है ढकता ।।
भेद बताकर ऊँच-नीच का , वह दूर सभी से है रहता ।
पर इनके ऐसे भाषण से , किसका होता खूँ गर्म नही ।।
वह बतलाते है धर्म हमें .....

जीवन के इस रेस कोर्स में , है यही यहाँ चलने वाला ।
झूठा स्वार्थी मक्कारी  से , अब कौन यहाँ लड़ने वाला ।।
आवाज उठी उस कोने से , यह बाबा है चलने वाला ।
 सुन जिसकी आज दहाड़ों में , तो होता लहजा नर्म नही ।।

०४/११/२०२३       -      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-


वह बतलाते हैं धर्म हमें , अब जिनका कोई धर्म नहीं ।

खेल रहे हैं खूनी होली , क्या कहता उनका कर्म नहीं ।।

वह बतलाते हैं धर्म हमें....
गीत :-

वह बतलाते हैं धर्म हमें , अब जिनका कोई धर्म नहीं ।
खेल रहे हैं खूनी होली , क्या कहता उनका कर्म नहीं ।।
वह बतलाते हैं धर्म हमें....

कोई बापू बन बैठा तो , कोई चाचा बन बैठा है ।
दीदी भैया के खेलों में , कोई बेटा बन बैठा है ।।
समय समय पर देखा हमने , सब अपना रिश्ता बतलाते ।
ऐसे रिश्तों में अब तक तो, सुन हमने देखा मर्म नहीं ।।
वह बतलाते है धर्म हमें ....

भूखी प्यासी जनता सारी , बिलख रही है गली-गली में ।
इधर-उधर बिखरे पर सारे , तितली बे-सुद पड़ी जमीं में ।।
सभी अट्टहस कर ढाढस दें , लो यह पैसे रकम बड़ी है ।
ऐसा अब इनको कहने में , सुन लो अब आती शर्म नही ।।
वह बतलाते है धर्म हमें ....

कोई हिन्दू-हिन्दू करता , कोई मुस्लिम-मुस्लिम करता ।
लेकिन असली पहचान यहाँ , वह धन दौलत से है ढकता ।।
भेद बताकर ऊँच-नीच का , वह दूर सभी से है रहता ।
पर इनके ऐसे भाषण से , किसका होता खूँ गर्म नही ।।
वह बतलाते है धर्म हमें .....

जीवन के इस रेस कोर्स में , है यही यहाँ चलने वाला ।
झूठा स्वार्थी मक्कारी  से , अब कौन यहाँ लड़ने वाला ।।
आवाज उठी उस कोने से , यह बाबा है चलने वाला ।
 सुन जिसकी आज दहाड़ों में , तो होता लहजा नर्म नही ।।

०४/११/२०२३       -      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-


वह बतलाते हैं धर्म हमें , अब जिनका कोई धर्म नहीं ।

खेल रहे हैं खूनी होली , क्या कहता उनका कर्म नहीं ।।

वह बतलाते हैं धर्म हमें....

गीत :- वह बतलाते हैं धर्म हमें , अब जिनका कोई धर्म नहीं । खेल रहे हैं खूनी होली , क्या कहता उनका कर्म नहीं ।। वह बतलाते हैं धर्म हमें.... #कविता