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अरे! कहाँ सोने की बेला किसको सुस्ताने की चाह जब

अरे! कहाँ सोने की बेला

किसको सुस्ताने की चाह 

जब तक पथ-अवरुद्ध पङी हैं 

भारत के विकास की राह ।

यतीश अकिञ्चन काव्य-पीयूष
अरे! कहाँ सोने की बेला

किसको सुस्ताने की चाह 

जब तक पथ-अवरुद्ध पङी हैं 

भारत के विकास की राह ।

यतीश अकिञ्चन काव्य-पीयूष