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yatishkumar9568
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यतीश अकिञ्चन

व्हाट्सएप 7830453950 🌹🏵️🌺🌸🌼🌷🌹 आह से उमड़ेगा उर-सिन्धु खुलेंगे मन के पट जो बन्द महावसु कौन रखेगा चारु हमारी कविता के दो छन्द 🌼🌼🌼🌼🌼🌼 ✍️ यतीश अकिञ्चन ✍️

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यतीश अकिञ्चन

#poem #kavita #hindi_poetry 
#Hindi
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यतीश अकिञ्चन

दशरथ ने जब सुना कि सरयू-तट पर होता है करि-रल्ल।
त्वरित शब्दभेदी निषङ्ग से किया हाय! निरीह नर-भल्ल।।


यतीश अकिञ्चन

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यतीश अकिञ्चन

दो रोटी की दौड़ में, गयी देह सब सूख।
किन्तु न मिट पायी कभी, दो रोटी की भूख।।
*********
यतीश अकिञ्चन
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यतीश अकिञ्चन

चाहता कोई हमें है
चाहते हैं हम किसी को
उस 'किसी' का और कोई प्यार है।
हाय! असमंजस अनोखा
जी रहा संसार है। #Love
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यतीश अकिञ्चन

सबके मुख पर एक मुखौटा,
सबके झूठे किस्सागोई।
इस जीवन में हमको अब तक,
अपने जैसा मिला न कोई।
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यतीश अकिञ्चन
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यतीश अकिञ्चन

#Labour_Day 🔥🔥🔥🔥🔥🔥
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जिसकी पीड़ा की लिए आरती,
                         गद्दी पर जाने वाले।
धूलों से उठकर फूलमयी मखमली,
                         तख्त    पाने   वाले ।
जिसकी आहों का ढोल बजा तू,
                          जय-जयकार लगाता था।
जिसके सीने की आग सदा,
                           अपने सीने में पाता था।

जिसके आँसू की कसम उठाकर,
                         अभय वीर सा चलता था ।
हल का हथियार बनाकर के,
                      निज बैरी दल को दलता था।
जिसके शरीर के श्वेद-कणों को,
                       गङ्गा-जल     बतलाता  था।   
माटी के वीरों को सहास,
                        अपना   देवता बताता था।

रे!देख!देख!देवता वही, रोटी-रोटी चिल्लाता है।
पी-पीकर लोचन-नीर स्वयम्,बोटी-बोटी हो जाता है।।
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★★★★★
यतीश अकिञ्चन
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यतीश अकिञ्चन

जो पढ़ता-लिखता है खूब
पुस्तक और कलम महबूब
जिसके सपने अभी जवान
जिससे बढ़े देश की शान

झूठे वादों की सरकार
जिसके सपने रही उजाड़
वह तख्ता कर सकता वाम
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यतीश अकिञ्चन

यशोधराओं के पारस-जीवन से संसर्ग करके कितने सिद्धार्थ बुद्ध-ज्योति की कनक-कान्ति जग में बिखेरने लगे ,किन्तु वह त्याग कभी न गाया गया जिससे यशोधरा जैसी स्वारागिनियों के साथ न्याय हो सके।
★★★
यतीश अकिञ्चन
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यतीश अकिञ्चन

#OpenPoetry निस्तेज आशाहीन-भाषादीन कविता व्यर्थ है
कवयित्रियों का हाल कहने में बड़ा प्रत्यर्थ है
धन-मान में डूबे हुए मन मञ्च पर जाने लगे
मानो कि चौमासा हुआ शैवाल उग आने लगे

यतीश अकिञ्चन
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यतीश अकिञ्चन

कर-कमल में हार लेकर जानकी चलने लगीं
सज्जनों में प्रीति दुष्टों में अनल पलने लगीं
सूर्य-कुल के सूर्य राघव मन्द मुसकाने लगे
देखकर शोभा करोड़ों काम शरमाने लगे
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यतीश अकिञ्चन
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