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"शोर" पन्नों पर है बिखर रहा, हर शोर मेरी ज़िंदगी का

पन्नों पर है बिखर रहा, हर शोर मेरी ज़िंदगी का।

गर पढ़ो तो शायद मिल जाए, कोई छोर मेरी ज़िंदगी का।


न जाने कब से होने को है, भोर मेरी ज़िंदगी का।

अब किस सावन में नाचेगा, ये मोर मेरी ज़िंदगी का?

पन्नों पर है बिखर रहा, हर शोर मेरी ज़िंदगी का। गर पढ़ो तो शायद मिल जाए, कोई छोर मेरी ज़िंदगी का। न जाने कब से होने को है, भोर मेरी ज़िंदगी का। अब किस सावन में नाचेगा, ये मोर मेरी ज़िंदगी का? #poem

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