तुम चाहे जितनी कोशिश कर लो मुझसे दूर जाने की मुझे भूल जाने की पर ऐसे कैसे भुलाने दूं तुम्हे तुमसे की हुई हर छोटी-छोटी बाते और कभी-कभी ही सही पर हुई जो मुलाकाते उसे यादों के बक्से से हर रोज निकाल कर तुम्हारे सामने ला दूंगा ऐसे तो नहीं भुलाने दूंगा तुम्हे कॉलेज के पहले दिन से ले कर आखरी दिन तक और पहली पीरियड से आखिरी पीरियड तक कोई ऐसा था ना जो सिर्फ तुम्हें देखता था न जाने कितनी नजरो से खुद को छिपा कर तुम्हारी बिंदी से ले कर तिल तक और कान के झुमके से लेकर पायल तक कोई था ना जो बस तुम्हें देखता रहता था अब तुम ही बताओ ना ऐसे कैसे भुलाने दूं तुम्हें कोई तो था ना जिसके नींदों में भी शामिल थी तुम और सुबह की चाय में भी हिचकी में भी तुम थी और रूह में भी अब तुम ही बताओ ना ऐसे कैसे भुलाने दूं तुम्हें–अभिषेक राजहंस ऐसे कैसे भुलाने दूँ तुम्हें