यूँ तो ज़िन्दगी खूब बिता ली अब ज़िदंगी जीने का मन है फिर किसी कागज की कश्ती में बैठकर उस पार जाने को मन है यूँ तो हकीकत की दुनिया में खूब खो लिए अब परियों के देश में जाने का मन है फिर दादी नानी की गोद में सिर रख कर किस्सों में खो जाने को मन है यूँ तो शामें कई गुज़ार ली अब शामें हसीन बनाने को मन है फिर खिलखिलाते हुए चहचाहते हुए नंगे पाँव दौड़ जाने को मन है यूँ तो फल खूब खा लिए अब फल के रसों में डूब जाने को मन है फिर पड़ोस के रामू काका की बगीची से फल चुरा कर भाग जाने को मन है यूँ तो बागानों में नकली ठहाके खूब लगा लिए अब खुल कर खिलखिलाने को मन है फिर चिल्लरो की खनखनाहट पर खुल कर मचल जाने को मन है बचपने में कितनी बड़ी नादानी कर बैठे बड़े होने की जल्दी में बचपन ही खो बैठे आज फिर उस बचपन में लौट जाने को मन है ज़िन्दगी की इस उलझी उधेड़ बुन में फिर से सुलझ जाने को मन है अब ज़िन्दगी फिर जीने का मन है ©purvarth #Life #ज़िन्दगी_जीना है अब