इक तो हुश्न कातिलाना फ़िर ये गेसुओं के छाँव तुम्हारे लबों के ये मैंखाने हैं हिरनी के पाँव तेरे नैन के कटाक्ष तेरे नथुनों के नक्श कंठ री सुराही और उभार धरा से ब्यास ताड़ सी कमर तेरी अजब सी है अंगड़ाई मुक बधिर हुए हैं हम देख तेरे नाभि की गोलाई इक तो हुश्न कातिलाना दूजा गेसुओं के छाँव निगाहें शौक हे ख़ुदाया, हम कहाँ-कहाँ दौड़ायें राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी ©मेरी दुनियाँ मेरी कवितायेँ हुश्न कातिलाना