1222 1222 122 हमारे चश्म जो पुरनम हुये है जुदाई में तेरी हमदम हुये है मिले है दर्द जो भी मोहब्बत के यहाँ पर कब किसी के कम हुये है जिसे चाहा उसी ने ठोकरें दी जहाँ के जुल्म भी हरदम हुये है सहे है ज़ख्म हँसकर दिल पे मैंने सितमगर के सितम क्या कम हुये है मिला कब साथ हमको रौशनी का जला के खुद को हम पूनम हुये है अज़ल जब ज़िन्दगी का आ गया ये तभी दिलबर के घर मातम हुये है ( लक्ष्मण दावानी ✍ ) 20/1/2017 ©laxman dawani #hangout #Love #Life #romance #Poetry #gazal #experience #poem #Poet #Knowledge