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रेत का पहाड़ खड़ा कर दिया है तुमने, पुदीना के पेड़

रेत का पहाड़ खड़ा कर दिया है तुमने,
पुदीना के पेड़ों पर चढ़ कर,
सपना सजा लिया है तुमने।
भौंरों के संग घूम घूम कर हल्ला मचा रहे हो,
लाल चीटियों के साथ बल्ला चला रहे हो।
तिरछी नजर है तुम्हारी सोच है टेढ़ी,
नहीं मंजिल का ठिकाना नहीं रास्ता है कोई,
हवा में लाठी चला रहे हो।
जुबान भी है तुम्हारी लाल मिर्च जैसी तीखी,
प्यार भरा जज्बा कहां है तुममें,
अपनों को भी करीब से तुम भगा रहे हो।
रोशन करते दिए को भी बुझा दिया है तुमने,
रीट का पहाड़ खड़ा कर दिया है तुमने।
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प्रमोद मालाकार की कलम से

©pramod malakar
  #रेत का पहाड़ खड़ा कर दिया है तुमने

#रेत का पहाड़ खड़ा कर दिया है तुमने #कविता

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