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आसावला जीव।ओसंडला भाव। अंतरीचा ठाव।सावळ्या तू।।१।।

आसावला जीव।ओसंडला भाव।
अंतरीचा ठाव।सावळ्या तू।।१।।

कातर मनाला।आठवं क्षणाला।
काकडा ओवला।देहरूपी।।२।।

मनं ओढावते।दर्शनांते आस।
जीवां रात्रंदिस।ध्यास तूझा।।३।।

तोडीयले बंध।पाश मायारुपी।
अंतरी स्वरूपी।तूच सदा।।४।।

काय करू सांग।चित्त उसवले।
पाहतो वाटुले।पंढरीची।।५।।

अंतरी उमाळा।तोची घननीळा।
सांगू लडिवाळा।गूज मनीं।।६।।

नाद प्रसवला।परब्रह्म देहीं।
मनाचियां डोही।नाद रंगे।।७।।

देहादेही एक।भाव समरूप।
पापांचे कळप।सुटती बां।।८।।

मागणें न दुजें।आतां उरे काही।
मनीं वसे ठायी।पांडुरंगे।।९।।

श्री. शंकर नागनाथ कांबळे

©Shankar kamble #वारी 
#विठ्ठल 
#पंढरपूर 
#माऊली 
#वारी_जांऊ 
#पांडुरंग 
#विठ्ठल_रखुमाई 
#सावळा
आसावला जीव।ओसंडला भाव।
अंतरीचा ठाव।सावळ्या तू।।१।।

कातर मनाला।आठवं क्षणाला।
काकडा ओवला।देहरूपी।।२।।

मनं ओढावते।दर्शनांते आस।
जीवां रात्रंदिस।ध्यास तूझा।।३।।

तोडीयले बंध।पाश मायारुपी।
अंतरी स्वरूपी।तूच सदा।।४।।

काय करू सांग।चित्त उसवले।
पाहतो वाटुले।पंढरीची।।५।।

अंतरी उमाळा।तोची घननीळा।
सांगू लडिवाळा।गूज मनीं।।६।।

नाद प्रसवला।परब्रह्म देहीं।
मनाचियां डोही।नाद रंगे।।७।।

देहादेही एक।भाव समरूप।
पापांचे कळप।सुटती बां।।८।।

मागणें न दुजें।आतां उरे काही।
मनीं वसे ठायी।पांडुरंगे।।९।।

श्री. शंकर नागनाथ कांबळे

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